This is a popular ghazal written by the famous poet Ahmed Faraz. It was originally sung by Iqbal Bano and later popularised by the Shahanshah-e-Ghazal Mehdi Hassan. It has also been attempted by other singers like Hariharan and Runa Laila. Even new age singers like Papon and Ali Sethi have tried to revive it through their renditions in MTV Unplugged and MTV Coke Studio respectively.
Check out their individual renditions below:
Iqbal Bano version
Mehdi Hassan version
Papon version
Ali Sethi version
Lyrics:
Check out their individual renditions below:
Iqbal Bano version
Mehdi Hassan version
Runa Laila version
Hariharan version
Ali Sethi version
Lyrics:
रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिये आ अब तक दिल-ए-खुशफ़हम को हैं तुझ से उम्मीदें ये आखिरी शम्में भी बुझाने के लिये आ इक उम्र से हूँ लज्ज़त-ए-गिरया से भी महरूम ऐ राहत-ए-जां मुझको रुलाने के लिये आ कुछ तो मेरे पिन्दार-ए-मोहब्बत का भरम रख तू भी तो कभी मुझ को मनाने के लिये आ माना के मोहब्बत का छुपाना है मोहब्बत चुपके से किसी रोज़ जताने के लिए आ जैसे तुम्हें आते हैं ना आने के बहाने ऐसे ही किसी रोज़ न जाने के लिए आ पहले से मरासिम ना सही फिर भी कभी तो रस्म-ओ-रहे दुनिया ही निभाने के लिये आ किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम तू मुझ से खफा है तो ज़माने के लिये आ
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